ससोदिया पत्ता स्मारक
राम-पोल के सामने ही, दक्षिण की ओर जाने वाले मार्ग पर मुड़ने से पहिले "ससोदिया पत्ता स्मारक" है। जग्गावत (चूण्डावत) शाखा के प्रधान व आमेट के रावतों के पूर्वज सिसोदिया पत्ता सन् 1567 ई. में अकबर की सेना से लड़ते हुए काम आये थे। कहते हैं कि युद्धभूमि में एक हाथी लड़ते हुए पत्ता को सूंड में पकड़ कर जमीन पर दे मारा जिससे उनकी मृत्यु हो गयी। इस युद्ध में अकबर पत्ता व जयमल की वीरता पर इतना मुग्ध हुआ कि उसने उन दोनों की हाथी पर चढ़ी हुई मूर्तियाँ बनवाकर आगरे के द्वार पर खड़ी करवाई।" उसके पश्चात् किलों के प्रवेश द्वार पर उनकी मूर्तियों को स्थापित करने का प्रचलन हो गया। बीकानेर के किले की सूरजपोल में हाथियों पर चढ़े हुए जयमल व पत्ता की विशाल मूर्तियाँ आज विद्यमान हैं।
"गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा: राजपुताने का इतिहास - ये मूर्तियां सन् 1663 तक विद्यमान वी और फ्रांसीसी यात्री बर्नियर ने भी इन्हें देखा था। शायद बाद में औरंगजेब ने उन्हें धर्मद्वेष के कारण तुडवा दिया हो।
इस स्मारक के दक्षिण की ओर जाने वाली सड़क के दाहिनी ओर (पश्चिम) में कुछ खण्डहर
दिखाई देते हैं। कहा जाता है कि ये खण्डहर “पुरोहितजी की हवेली" के हैं। इसी मार्ग पर आगे
एक मन्दिर आता है जो "तुलजा भवानी का मन्दिर" कहलाता है। इसके निर्माण के सम्बन्ध में ऐसा
प्रचलित है कि बनवीर ने अपने तुलादान के धन से इस मन्दिर को बनवाया था।
तुलजा माता के मन्दिर के पश्चात् हम दुर्ग के लगभग समतल भाग में पहुँचते हैं जहाँ पर्यटकों के विश्राम के लिए प्लेटफार्म' बना है। उस स्थान से दुर्ग की तलहटी में बसे चित्तौड़ शहर का दृश्य बड़ा ही सुन्दर लगता है। आगे दुर्ग के दर्शनीय ऐतिहासिक स्मारक इस प्रकार हैं
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