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पन्ना धाय का त्याग

पन्ना धाय का त्याग


महाराणा विक्रमदित्य ने चित्तौड़ का किला पुनः प्राप्त तो कर लिया किन्तु स्वभाव में कोई अन्तर नहीं आया, जिसके फलस्वरूप उसके चारों ओर केवल चापलूसों का जमाव ही रह गया। उपयुक्त अवसर देख बनवीर, जो कि राणा सांगा के भाई पृथ्वीराज का दासी पुत्र था, चित्तौड़ आया तथा महाराणा का कृपापत्र बन गया। एक रात अवसर देख बनवीर ने राज्य प्राप्ति के लाभ में महाराणा विक्रमादित्य को मार डाला तथा मेवाड़ के भावी उत्तराधिकारी उदयसिंह को भी खत्म करने के लिए महलों की ओर बढ़ा। उदयसिंह की धाय पन्ना, ने जो खीची राजपूत वंश की थी, इसकी सूचना पाते ही उदयसिंह को वारी के हाथों छिपाकर किले के बाहर निकाल दिया तथा उसके बदले अपने स्वयं के लड़के को, उदयसिंह के कपड़े पहना कर, उपस्थित कर दिया। देखते ही देखते, मदान्ध बनवीर ने, पन्ना की आंखों के सामने, उसके लड़के को उदयसिंह समझकर, तलवार से मोत के घाट उतार दिया। इस प्रकार मेवाड़ के भावी स्वामी की रक्षा के लिए अपने पुत्र का बलिदान कर पन्ना ने अपनी स्वामी भक्ति व त्याग का परिचय दिया। उसी रात पन्ना किले से निकल कर वारी से जा मिली तथा उदयसिंह को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। उस समय उदयसिंह की आयु लगभग 15 वर्ष की थी। कर्नल टॉड के अनुसार उदयसिंह की कुम्भलमेर में आशाशाह देपुरा के संरक्षण में रखा गया था। लगभग 5 वर्ष के बाद उदयसिंह ने बनवीर को हराकर किला वापस ले लिया तथा बनवीर दक्षिण की ओर भाग गया। यह भी कहा जाता है कि बनवीर इस लड़ाई में मारा गया था।

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