बनवीर को हराकर महाराणा उदयसिंह चित्तौड़ की गद्दी पर बैठे। उस समय भारत में मुगलों की ताकत बढ़ रही थी। बादशाह अकबर ने प्राय: सभी राजपूत शासको को अपने अधीन कर लिया था, किन्तु स्वाभिमानी
गीरी शंकर हीराचन्द्र ओझा: मेवाड़ का इतिहास
महाराणा उदयसिंह अकबर की दास्ता सहने को राजी नहीं हुए। इस पर अकबर स्व एक विशाल सेना लेकर चित्तौड़ पर चढ़ आया तथा 20 अक्टूबर 1567 को किले पर घेरा डाल दिया। महाराणा मेवाड़ की शक्ति को संगठित करने के लिए चित्तौड़ के किले का भार साईदास (सलूम्बर), सिसोदिया पत्ता (केलवा) व राठौड़ जयमल (बदनोर) को सौंपकर, स्वंय पहाड़ों में चले गये। महाराणा की अनुपस्थिति में इन वीरो ने मुगल सेना का डटकर मुकाबला किया तथा इस युद्ध में स्वयं अकबर भी कई बार भौत के पंजे में जाते-आते बचा। ऐसा कहा जाता है कि अकबर ने राठौड़ जयमल को यह भी प्रलोभन दिया था कि यदि यह चित्तौड़ का किला सौंप दे तो अकबर उसे वहां का सुबेदार नियुक्त कर देगा। किन्तु स्वामीभक्त जयमल ने इसका उत्तर इस प्रकरा दिया
जैमल लिखे जवाब जद, सुण जे अकबर शाह
आण फिरै गढ़ उपरां, टूटा सिर पतसाह ।।
हे गढ़ म्हारो हूं पणी, असुर फिर किम आण
कूंची गढ़ चित्तौड़ री, दीवी मुज्झ दिवाण ।। (अर्थात् .....जयमल उत्तर देते हैं कि अकबर शाह सुनिये मेरे सिर के टुकड़े होने पर ही चित्तौड़गढ़ पर आपकी दुहाई फिर सकती है, चित्तौड़ तो मेरा ही है, में ही यँहा का स्वामी हूँ। एकलिंगजी के दीवान महाराणा ने दस किले की कुंजी मुझे सौंपी हैं। इसलिए मेरे जीते जी यहां मुगलों की दुहाई कैसे फिर सकती है।)
इस पर युद्ध चालू रहा। एक दिन राठौड़ जयमल किले की दीवार की मरम्मत करवा रहे थे कि
बादशाह अकबर ने अपनी 'संग्राम' बन्दूक से गोली चलाई जो जयमल के पैर में लगी, किन्तु वे किले
की रक्षा में लगे रहे। अन्त में बचने को कोई उपाय न देख किले में जौहर की आग पथक उठी तथा
क्षत्रिय वीर दुर्ग का द्वार खोल शत्रु सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध में साईंदास,
पत्ता व जयमल अनेक वीरों के साथ काम आये तथा किले पर अकबर का अधिकार हो गया। यह
चित्तौड़ का 'तीसरा शासक' कहलाता है।
वित्तौड़ को जीतने के बाद अकबर ने उदयसिंह का पीछा किया, किन्तु वह महाराणा को अधीन करने में सफल नहीं हुआ। महाराणा उदयसिंह ने मेवाड़ राज्य की नयी राजधानी उदयपुर की नींव डाली। महाराणा उदयसिंह का देहान्त सन् 1572 ई. में हुआ।
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