हमीर सिसोदे के सामन्त अरिसिंह का पुत्र था। अरिसिंह अपने पिता राणा लक्ष्मणसिंह के साथ चित्तौड़ के युद्ध में लड़ते हुए काम आया, जिस पर अरिसिंह का छोटा भाई, अजयसिंह सिसोदे का सामन्त बना। जब अजयसिंह को मालूम हुआ कि अरिसिंह का पुत्र हमीर ननिहाल में है, तो उसने हमीर को अपने पास बुलाया तथा उसकी वीरता से प्रसन्न होकर और बड़े भाई का पुत्र होने कारण, सिसोदा का वास्तविक अधिकारी भी वही है सोचकर हमीर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस पर अजयसिंह के दोनों पुत्र सज्जनसिंह और क्षेमसिंह नाराज होकर दक्षिण को चले गये। इसी सज्जनसिंह के वंश में मराठों का राज्य स्थापित करने वाले प्रसिद्ध वीर शिवाजी उत्पन्न हुए थे।
हमीर ने राव मालदेव सोनगरा की पुत्री से विवाह किया और अपनी रानी द्वारा बतायी गई युक्ति व मेवाड़ के सामन्तों से मिलकर चित्तौड़ किले पर पुनः अधिकार किया। उस समय मालदेव के पुत्र जैसा का किले पर अधिकार था।
ऐसा कहा जाता है कि मालदेव के पुत्र जैसा के हाथ से चित्तौड़ निकल जाने पर वह दिल्ली के सुलतान मुहम्मद तुगलक की शरण में पहुंचा और वहाँ से विशाल सेना लेकर हमीर पर चढ़ आया। सिंगोली गाँव के पास युद्ध हुआ जिसमे शाही सेना की हार हुई थी। महाराणा हमीर से अन्त तक मेवाड़ पर सिसोदिया राणा शाखा का ही शासन रहा।
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