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चित्तौडग़ढ़ : एक संक्षिप्त परिचय

 


"There is not a petty State in Rajasthan that has not had thermopalli and scarcely a city that has not produced its Leonidas".

-Col. james Tod


(राजस्थान में कोई जगह ऐसी नहीं है जिसमें धर्मोपल्ली जैसी रणभूमी न हो और शायद ही कोई ऐसा नगर मिले जहां ग्रीक वीर लियोनिडास के समान मातृभूमि पर बलिदान होने वाले वीर पुरुष उत्पन्न न हुआ हो।)


कर्नल टॉड का यह कथन बिल्कुल सत्य है, क्योंकि यह वही राजस्थान है जहाँ क्षत्रिय वीर स्वतन्त्रता,


धर्म, आन, मान, और शान पर मर मिटने को अपना सौभाग्य समझते थे, जहाँ वीर रमणियां अपने


आत्म सम्मान की रक्षा के लिए दहकती हुई चिताओं में अपने कोमल शरीर की आहुति देने में तनिक


भी नहीं हिचकिचाती थीं। बल्कि अनेक वीरांगनाओं ने तो समय आने पर रणचण्डी का रूप घर अपनी


शूरवीरता का परिचय दिया है। इसके अतिरिक्त यहां के साधारण निवासी भी अवसर आने पर धर्म, स्त्री


जाति एंव भूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों का मोह नहीं करते थे। जैसा कि एक कवि ने कहा है


घर जाता धम पलटताँ, त्रिया पड़न्ता ताव ऐ तीनू दिल मरण रा, कांई रंक काई राव ।।


वीरों की इस क्रीड़ा भूमि में चित्तौड़गढ़ का अपना विशिष्ट स्थान है। चित्तौड़ का विशाल, शौर्य और बलिदान का प्रतीक दुर्ग आज भी अपने प्राचीन कृत्यों की गौरवपूर्ण स्मृति को हृदय में छिपाये देश के सच्चे सपूतों को देश प्रेम व त्याग की प्रेरणा देता है; और उसका चप्पा-चप्पा बताता है इतिहास, प्रताप के देशप्रेम का, कुम्मा के शीर्य का, रानी पद्मिनी के जौहर का, हमीर के हठ का, गोरा-बादल के बलिदान का और सुनाता है एक कहानी माँ के बलिदान, निष्ठा और त्याग की, जिसका सारी दुनिया के इतिहास में भी कहीं ढूंढने से नहीं मिलेगा, और वह कहानी है पन्ना धाय की।


यह वही वीर भूमि है, जहाँ हर वीर ने देश की स्वतन्त्रता के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। महाराणा प्रताप की एक ललकार पर जाने कितने योद्धाओं ने प्राण न्यौछावर कर दिये। ऐसी है यह पावन व प्रेरणादायक भूमि चित्तौड़ की।

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